दो अक्षरों के आपस में मिलने से उनमें जो विकार पैदा होता है, उसे संधि कहते हैं। संधि और संयोग में बड़ा अंतर है। संयोग में अक्षर अपने मूल रूप मे बने रहते हैं।
जैसे – क् + अ + म् + अ + ल् + अ । इन छह: वर्णों के संयोग से कलम शब्द बना है। और इस शब्द में सभी वर्ण अपने मूल रूप में ही है। परंतु संधि में उच्चारण के नियम के अनुसार दो वर्णों या अक्षरों के मेल से उनके बदले कोई दूसरा अक्षर बन जाता है। जैसे-
सत् + आनंद = सदानंद। इस शब्द में ‘त्’ और ‘आ’के आपस में मिलने से एक भिन्न वर्ण बन गया है।

संधि क्या है?

दो वर्णों के मेल से पैदा होने वाले विकार को संधि कहा जाता है। संधि शब्द का सामान्य अर्थ मेल होता है। हिंदी व्याकरण में इसका प्रयोग भिन्न अर्थ में होता है। दो शब्द जब आस-पास होते हैं, तो उच्चारण की सुविधा के लिए पहले शब्द का अंतिम और दूसरे शब्द का पहला वर्ण आपस में मिल जाते हैं। इस मिलन से विकार पैदा होता है। इसी विकार को संधि कहा जाता है। संधि में वर्णों की मिलावट को समझकर पदों को अलग-अलग करने की प्रक्रिया को संधि -विच्छेद कहते हैं।
जैसे-
जगत् + नाथ =जगन्नाथ
विद्या + आलय =विद्यालय
शिव + आलय = शिवालय
गिरि + ईश = गिरीश ।

संधि के भेद

संधि के तीन भेद हैं:

  • स्वर संधि
  • व्यंजन संधि
  • विसर्ग संधि

1.स्वर संधि

दो वर्णों के मिलने से जो विकार पैदा होता है ,उसे स्वर संधि कहा जाता है। स्वर संधि में एक स्वर दूसरे स्वर से मिलता है।
जैसे-
अन्न + अभाव =अन्नाभाव
भोजन + आलय = भोजनालय
महा + आशय = महाशय
मही + इन्द्र = महीन्द् ।

स्वर संधि के भेद

स्वर संधि के पांच भेद हैं :

  1. दीर्घ संधि
  2. गुण संधि
  3. वृद्धि संधि
  4. यण् संधि
  5. अयादि संधि

2.व्यंजन संधि

व्यंजन वर्ण के साथ व्यंजन वर्ण या स्वर वर्ण के मिलने से उत्पन्न विकार को व्यंजन संधि कहते हैं। अर्थात् एक व्यंजन के दूसरे व्यंजन या स्वर से मिलने पर जो विकार पैदा होता है उसे व्यंजन संधि कहते हैं। व्यंजन संधि के तीन वर्ग बनाए जा सकते हैं-
व्यंजन और स्वर का योग, जैसे- वाक् + ईश ‌= वागीश ,जगत् + ईश ,=जगदीश
स्वर और व्यंजन का योग ,जैसे – आ + छादन = आच्छादन , परि + छेद = परिच्छेद
व्यंजन एवं व्यंजन का योग ,जैसे- दिक् + दर्शन = दिग्दर्शन, उत् + ज्वल + = उज्जवल

व्यंजन संधि के नियम

(क) यदि वर्ग के प्रथम अक्षर अर्थात क् ,च् ,ट् ,त्, प् के बाद किसी वर्ग का तीसरा या चौथा अक्षर या अंत:स्थ वर्ण अथवा कोई स्वर आए,तो वर्ग के उस प्रथम अक्षर के स्थान पर उसी वर्ग का तीसरा अक्षर हो जाता है ।
जैसे-
दिक् + अन्त = दिगन्त
वाक् + ईश = वागीश
दिक् + गज = दिग्गज
अच् + अन्त = अन्त

(ख) यदि किसी वर्ग के प्रथम अक्षर क्,च्,ट्,त्,प् के बाद उसी वर्ग का पांचवा अक्षर आवे तो प्रथम अक्षर के स्थान पर उसी वर्ग का पांचवा वर्ण हो जाता है ।
जैसे-

पाक् +मुख = पाडड़मुख
जगत् + नाथ = जगन्नाथ
उत् + नाथ = उन्नत
षट् + मांस = षण्मास
(ग) यदि वर्गों के प्रथम चार वर्णों के बाद ह आए तो ह पूर्व वर्ण के चतुर्थ वर्ण हो जाता है तथा ह के पूर्व वाला वर्ण अपने वर्ग का तृतीया वर्ण हो जाता है।
जैसे-
वाक् + हरि = वाग्हरि
उत् + हार = उद्धार
उत् + हत = उद्धत
(घ) यदि त् के बाद कोई स्वर अथवा ग,घ,द,ध,ब,भ,य,र,ल,श आवे तो त् का द् हो जाता है।
जैसे-
सत् + आनंद = सदानंद
उत् + घाटन = उद्घाटन
उत् + गम = उद्गम
(ड़) यदि त् अथवा द् के आगे च या छ आवे तो त् या द् के स्थान पर च् हो जाता है। यदि त् या द् के बाद ज या झ आवे तो त्,द् के स्थान पर ज् हो जाता है। यदि त् ,द् के बाद टवर्ग का कोई वर्ण आवे तो त् ,द् के स्थान पर वही वर्ण और त्,द् के बाद ल आवे तो त्,द् का द् हो जाता है।
जैसे-
उत् + चारण = उच्चारण
सत् + जन = सज्जन
सत् + चरित्र = सच्चरित्र
तत् + लीन = तल्लीन
(च) यदि त् या द् के बाद श हो तो दोनों मिलकर च्छ हो जाता है|
जैसे-
सत् + शास्त्र = सच्छास्तर
उत् + शिष्ट = उचि्छष्ट
(छ) ज् के बाद यदि न हो तो दोनों मिलकर यानि ज् + न मिलकर ज्ञ हो जाते हैं ।
जैसे- यज्ञ + न = यज्ञ

3.विसर्ग संधि

विसर्ग (:) के साथ स्वर या व्यंजन के मेल से जो विकार उत्पन्न होता है, उसे विसर्ग संधि कहते हैं। जब स्वर या व्यंजन मिलकर विसर्ग को परिवर्तित करते हैं तब विसर्ग संधि होती है।

विसर्ग संधि के नियम
(क) यदि विसर्ग के बाद च या छ हो तो विसर्ग का श् हो जाता है। विसर्ग के बाद ट,ख रहे दो विसर्ग का ष् हो जाता है और विसर्ग के बाद त ,थ रहे तो विसर्ग का स् हो जाता है।
जैसे-
नि: + चल = निश्चल
नि: + चय = निश्चय
दु: + ट = दुष्ट

(ख) यदि विसर्ग के पहले इ या उ हो और उसके बाद क,ख,प,फ हो तो विसर्ग का लोप होकर उसके स्थान पर ष् हो जाता है और विसर्ग के बाद ष् हो जाता है ।
जैसे-
नि: + कपट = निष्कपट
दु: + कर्म = दुष्कर्म
नि: + पाप = निष्पाप
नि: + फल = निष्फल

(ग) यदि विसर्ग के पहले अ हो और उसके बाद किसी वर्ग का तीसरा ,चौथा, पांचवा वर्ण या य,र,ल,व,ह रहे तो विसर्ग के स्थान पर ओ हो जाता है।
जैसे –
मन: + हर = मनोहर
अधि + गति = अधोगति
मन: + नीत = मनोनीत
सर: + रूह = सरोरूह

(घ) यदि विसर्ग के पहले अ,आ को छोड़कर कोई अन्य स्वर तथा बाद में कोई स्वर या किसी वर्ग का तीसरा ,चौथा, पांचवा ,वर्ण अथवा य, र, ल में से कोई वर्ण रहे, तो विसर्ग का र् हो जाता है।
जैसे-
नि: + उपाय = निरूपाय
नि: + गुण = निर्गुण
नि: + आशा = निराशा
दु: + लभ = दुर्लभ

(ड़) यदि विसर्ग के बाद र हो, तो विसर्ग का लोप हो जाता है। उसके पूर्व ह्स्व स्वर का दीर्घ हो जाता है।
जैसे-
नि: + रोग = नीरोग
नि: + रस = नीरस
पुनः+ रमते = पुनारमते

(च) यदि विसर्ग के बाद श,ष,स आवे तो विसर्ग का क्रमशः श्,ष्,स् हो जाता है।
जैसे –
दु: + शासन = दुश्शासन
नि: + संदेह = निस्संदेह
नि: + सार = निस्सार
नि: + शंक = निश्शंक

(छ) यदि विसर्ग के पहले अ हों और उसके बाद क,ख या प हो , तो विसर्ग में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं होता है। जैसे-
अंत: + पुर = अंत:पुर
प्रात: + काल = प्रात:काल ।